नमो ननरंजन आद जुगादी, जो सरब शकत भरपूर ।
ननमस् कारं ननमस् कारं, ननत सत तत्त शबद हजूर ॥
ननमख ननमख मैं दण्डवत करूँ । पारब्रह्म की सरनी पडूं ॥
पूरण पुरख परमेश्व र ध् याऊूँ । सरब सररष्ट में सो दरसाऊूँ ॥
अखण्ड सरप अबगत आपारी । ननरमल नाम करूँ नवचारी ॥
सरब परकाशी जोत सरप । तीन काल में रहे अनूप ॥
अकाल सरप तत्त ननरवान । सहज भाये नचत धरूँ ध् यान ।।
मंगलकारी तत्त शबद अलेख । सरब जगत तेरा प्र भभेख ।।
ननत बन् दू ननत करूँ नवचार । परमानन्द शकत ननरधार ॥
अपरम अपार लीला नबस्तारी । पूरन पुरख जाऊूँ बनलहारी ॥
अन्तरगत में सरब समाई । नाम तेरा अखण् ड सुखदाई ॥
परम धाम तूं आप स् वामी । अच्छर अबगत तूँ अन्तरयामी ॥
पाूँच भूत का तूं ही आधार । आदी पुरख सरजनहार ॥
अचरज शकत अतुल परमान । तूं ही सत केवल भगवान ॥
डण् डवत करूँ पाऊूँ अरदास । ननत ननत राखूूँ चरन ननवास ॥
नबस् माद सरप तेरा भगवन् त । तूं ही नवचरें रप अनन् त ॥
अन्तरगत में करूँ ध् यान । सतगुर सीख का पाऊूँ ननधान ॥
अत ही अचरज जगत पसारा । रंचक भेद नहीं नमले दातारा ॥
करूँ परनाम पल पल की सार । सत ठाकर तोहे ननत ननमस्कार ॥
तेरी ओट पूरन जगदीश । सरनागत हो करूँ आदेस ॥
ननरमल नचत से करूँ ध् यान । आद जुगादी तू सत भगवान ॥
भवसागर में आय के, नारायण नचत राख ।
‘मंगत’ नमले सत शान्ती , सतगुर की सुन साख ॥ 1 ॥