परम सुख कैसे प्र ाप्त हो ?

हर एक जीव चाहता है नक मुझे सुख नमले । मुझे ऐसा आनन् द शंाानत नमले नजसमें कमी न होने पाये और वह सुख हमेशा बना रहे । जीव इसकी कायमी के नलए कई तरह के यत्न -प्रयत्न करता है लेनकन उसकी चाहना पूरी नहीं होती । इसका कारण यह है नक वह आत्म परायणता को छोड़कर देह परायणता धारण नकये हुए उसकी तलाश कर रहा है। जब-तक देह परायणता को छोड़कर इस देह के अन्दर जीवन शनि आत्मा की प्र ानप्त का यत् न नहीं करता उसे सुख नहीं नमल सकता । इसके नलए उसे सत् पुरु षों की सत् नशक्ष ा को धारण करना होगा। देह के भोगों में मयाादा धारण करनी होगी । प्र भु नसमरण द्व ारा मन का पदाा दूर करना होगा। जब उस परम तत् व की अनुभवता होगी तब उसे तृनप्त होगी। इसके बगैृ़र परम सुख की प्र ानप्त कनठन है ।

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संगत समतावाद धर्मशाला – हरिद्वार
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