उत्तर: जीव और देह का सम् बन् ध मानलक और मकान के मुतानबक (अनुसार) है, अर् ाा शरीर रप मकान में जीव रप मानलक है । गीता में अनधभूत, अनधदेव, अध् यात् म स् वरप प्र कृनत का मानलक अनधयज्ञ स् वरप जीवन शनि का बयान है । इसका नवचार करें ।
उत्तर: देह और संसार का भेद कोई नहीं है अर् ाात् देह धारण करने से संसार का ननवााह चलता नदखाई देता है । देह के नाश होने पर जानहरी (प्रत्यक्ष) संसार लोप हो जाता है । देह और संसार का एक ही रप है। देह करके संसार है । असनलयत में संसार कोई चीज नहीं है । जैसी नजसकी देह है वैसा ही उसका संसार है । इसनलए देह पर काबू पाने से संसार पर काबू पाया जाता है । यह ननश्चय करें ।
उत्तर: संसार शकूक (शंकाओं) का समुद्र है ।
उत्तर: अज्ञ ानता वश जीव अहं बुनि धारण करता है । इस कारण ही संसार में फैला हुआ है । जब बुनि साधन करते-करते ननिःसंग अवस्र् ा को प्र ाप्त होती है तो आत्म नस्र् नत द्व ारा संसार गायब (लोप) हो जाता है । सब शकूक नाश को प्र ाप्त हो जाते हैं । जीव परम सत्य में लीन हो जाता है।
उत्तर: मी , अवतारों और महापुरु षों का शरीर भी पांच तत् वों का होता है । यहां यह भाव नहीं है नक उनका शरीर सत्-नचत् आनन् दमय र् ा । इस भाव को आगे खोला गया होगा।