जीवन सम्बन्धी पत्र

सत् परायणता का ननश्च य दृ ढृढ़ करने का आदेश इस भयानक नानस्तकवाद के ज़माने में जबनक आम मानुषों ने जीवन कत्र्तव्य केवल शारीररक भोग ही समझ रखा है , और अनत भोग वासना में आरढ़ हुए-हुए अनधक भोग पदार् ा प्र ाप्त करने के यत् न में नदन रात परेशान रहते हैं; न ही शरीर की नवनाश ननश्चय आती है , न अनत भोगों की प्र ानप्त दुिःख रप प्र तीत होती है, और न ही सत् कत्र् तव् य जीवन का अनुभव होता है । महज़ पशु समान ही जीवन यात्र ा को व् यतीत करके अनत खेद सनहत काल के मुख में जा रहे हैं । ऐसे अनधक तमोगुणी के फैलाओ के ज़माने में नजसको सत् परायणता का ननश्च ा दृढ़ हो रहा है वह दुलाभ कमाचारी पुरु ष है । सो प्रे मी जी , मानुष जन् म का उत्त म कत्र् तव् य तो यह ही है नक नाशवान शारीररक भोग वासना से ननवृनत्त प्र ाप्त करके अनवनाशी तत् व की खोज में अनधक दृृ़ ढ़ता धारण करें और पूणा सत् यत् न द्व ारा तमाम माननसक नवकारों से पनवत्रता हानसल करके अखण्ड अनवनाशी तत्व ननज स् वरप के बोध को प्र ाप्त होवें , जो परम नस्र्नत और परम शानन्त है । ऐसे जीवन के सही भेद को समझ करके ननत ही ननमाान भाव को धारण करके अपने आपको सत् ग्र ह में दृ ढ़ करें यानी सत् नवश्व ास, सत् अनुराग और सत् ननध् यास में पूणा ननश्च य से कारबन् द (नस्र् त) होवें । तब ही नाशवान भोगों से वैराग को प्र ाप्त करके सत् नाम में ननश्च लता दृ ढ़ होगी जो तमाम सुखों का भण्डार है । ऐसी नस्र् नत वाला पुरु ष अपने तमाम शारीररक सुखों के राग को त् याग करके नननमत्त मात्र शारीररक कमों में नवचरता हुआ सत् स् वरप आत् मा में ननिःचल रहता है । वह ही परम भगत और परम ज्ञ ानी है । ऐसी अवस्र्ा ही दुलाभ है। प्र भु ननत ही परम अनुराग और ननमाल सत् यत् न अपनी जीवन उन्ननत का देवे ।

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संगत समतावाद धर्मशाला – हरिद्वार
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